1. सूरदास कृष्ण भक्तिधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। सूर ने जो वात्सल्य वर्णन किया है वह अन्यत्र दुर्लभ है। “प्रथम पद में दुलार भरे कोमल-स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है। द्वितीय पद में पिता नंद की गोद में बैठकर बालक कृष्ण को भोजन करते दिखाया जा रहा है। दोनों ही पदों में प्रेम और भक्ति की मर्मस्पर्शी अंतर्धारा प्रवाहित है। घर-घर के सुपरिचित इन दृश्यों और प्रसंगों में कवि के हृदय का ऐसा योग है कि ये प्रसंग अमिट हो जाते हैं।”
पद-1 में ब्रजराज कृष्ण को जगाया जा रहा है। कमल और कुसुम खिल गए हैं। कुमुद-पुष्पों ने अपने पंखुड़ियों को समेट लिया है। भौर लता में खो गए हैं। मुर्गों और अन्य पक्षियों की चहचहाहट की आवाज आ रही है। बछरा को दूध पिलाने के लिए गायें दौड़ रही हैं। चंद्रमा का प्रकाश मद्धिम-कमजोर पड़ गया है। सूर्य का प्रकाश फैल रहा है। सारे नर एवं नारी जग गए हैं। सूरदास कहते हैं कि सबेरा हो गया है। हे कृष्ण! अब आप जाग जाइए। आप कमल को हाथ में धारण करने वाले हैं।
दूसरे पद में बालक कृष्ण की लीला का वर्णन किया गया है। बालक कृष्ण नंद की गोद में बैठकर खा रहे हैं। वे कुछ खाते हैं तो कुछ धरती पर गिरा देते हैं। उनकी इस छवि को नंद की रानी देख रही हैं। माँ यशोदा देख कर प्रसन्न हो रही हैं। बेसन की बनी बरी वे खा रहे हैं। वे बड़ा भी खा रहे हैं। तरह-तरह की पकी हुई, छानी हुई चीजें वे खा रहे हैं। विविध प्रकार के व्यंजन वे खा रहे हैं। वे दही और मक्खन में मिसरी मिलाकर खाते हैं। यह बाल सुलभ लीला भगवान श्री कृष्ण की धन्य है। कभी अपने मुँह में डालते हैं तो कभी नंद के मुख में। इस अलौकिक सौंदर्य का वर्णन करते नहीं बनता है, जो आनंद नंद एवं यशोदा को मिल रहा है वह तीनों लोकों
में भी दुर्लभ है। भोजन करने के बाद नंद हाथ मुँह धो लेते हैं। सूरकवि तो इस अद्भूत जूठन की माँग करते हैं। सूर का यह वर्णन अद्भूत बन पड़ा है।
2. सूरदास वात्सल्य-वर्णन के अद्वितीय कवि हैं। इस धरातल पर उनसे तुलना के लिए संसार में कोई कवि नहीं दिखाई पड़ता। वात्सल्य भाव के पदों की विशेषता यह है कि पाठक जीवन की नीरस और जटिल समस्याओं को भूलकर उनमें तन्मय और विभोर हो उठता है।
पाठ्य पुस्तकं के दोनों पद वात्सल्य भाव के हैं और ‘सूरसागर’ से संकलित हैं। इन पदों में विषय, वस्तु-चयन, चित्रण, भाषा-शैली, संगीत आदि गुणों का प्रकर्ष-उत्कर्ष दिखाई पड़ता है। पहले पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है। दूसरे पद में पिता नंद की गोद में बैठकर बालक कृष्ण को भोजन करते दिखाया जा रहा है।
2. नाभादास सगुणोपासक रामभक्त कवि थे।
उनकी भक्ति प्रचलित राम भक्ति से थोड़ी भिन्न थी। उसमें मर्यादा के स्थान पर माधुर्यभाव का पुर्ट था।” यहाँ कबीर और सूर पर लिखे गए छप्पय ‘भक्तमाल’ से संकलित हैं।” कबीर और सूर दो भक्तिधाराओं के कवि रहे हैं। कबीर निर्गुण काल की संतधारा के कवि हैं। सूरदास सगुण रामकाव्यधारा के कवि हैं। कबीर विषयक छप्पय में नाभादास कहते हैं कि जो धर्म में भक्ति से विमुख हो गया, वह अधर्म करता है। बिना भक्ति के किसी धर्म का महत्त्व नहीं। योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन के बिना सब धर्म तुच्छ हैं, छोटे हैं, बौने हैं। हिंदू और तुकों के लिए कबीर की ‘रमैनी’, ‘सबदी’, ‘साखी’ प्रमाण है। इनमें किसी धर्म के साथ पक्षपात नहीं किया गया है। सभी धर्म के हित की बात कही गयी है। संसार की दशा को देखकर ही कबीर ने लिखा है। कबीर ने किसी धर्म की मुँहदेखी नहीं की। कबीर ने वर्णाश्रम के षट्दर्शन की भी प्रशंसा नहीं की।
दूसरे छप्पय में नाभादास ने सूरदास के बारे में लिखा है। सूरदास कृष्ण के भक्त थे। सूर की कविता सुनकर कौन उनकी प्रशंसा नहीं करेगा? सभी प्रशंसा करेंगे। सूर ने कृष्ण की लीला का वर्णन किया है। सूर की कविता में सबकुछ मिलता है। गुण का माधुर्य एवं रूप का माधुर्य सबकुछ भरा हुआ है। सूरदास दिव्य दृष्टि संपन्न कवि थे। वही दिव्यता उनकी कविता में भी रेखांकित की जा सकती है। गोप-गोपियों के अद्भूत संवाद अद्भुत प्रेम दर्शाते हैं। सूर की
वाणी में विचित्रता है, माधुर्य है और अनुप्रासों की छटा-सुंदरता। दो परस्पर विरुद्ध धाराओं के कवि की प्रशंसा में नाभादास सफल हुए हैं।
3. रीतिकालीन कवि होते हुए भी पाठकों में वीर रस की भावना का संचार करने में भूषण एक श्रेष्ठ कवि ठहरते हैं। वे स्वाभिमान, आत्मगौरव, शौर्य और पराक्रम की भावना जगाने में सफल हैं। प्रस्तुत प्रथम कवित्त ‘इन्द्र जिमि’ में कवि ने छत्रपति शिवाजी की प्रशंसा की है।
जिस प्रकार इन्द्र का यम पर अधिकार है, बड़वाग्नि जैसे- समुद्र के जल को शांत करती है, उसी प्रकार पवन बादलों को तितर-बितर कर देता है। भगवान शंकर का कामदेव पर अधिकार है। सहस्त्रार्जुन पर परशुराम विजयी हुए थे। जंगल की अग्नि पेड़ की शाखाओं पर विजय प्राप्त की है। भगवान श्री कृष्ण ने दुष्ट कंस पर विजय प्राप्त की है। चीता मृग के भीड़ पर आक्रमण कर देता है। भूषण कवि कहते हैं- उसी प्रकार हाथी पर सवार छत्रपति शिवाजी मृगराज की तरह शोभित हो रहे हैं। वे शेर बनकर गर्जना कर रहे हैं। दूसरे कवित्त ‘निकसत म्यान’ में कवि भूषण राजा छत्रसाल की वीरता का वर्णन करते हैं। म्यान से निकलती उनकी तलवार सूर्य की तरह प्रखर है। वह तलवार विशाल हाथियों के झुंड को छिन्न-भिन्न कर देती है। दुश्मनों के गले में यह तलवार नागिन साँप-सी लिपटती-काटती है। कटे हुए मुंड की माला तैयार हो जाती है, जैसे छत्रसाल महाबली हैं। उनकी कहाँ तक प्रशंसा की जाय? छत्रसाल की तलवार शत्रुओं के जाल को काटकर रणचण्डी की भाँति किलकारी भरती हुई काल को ग्रास बनाती है।
छत्रसाल अत्यन्त धीर-वीर योद्धा की तरह हैं।
यह कविता भयानक रस संचार करने में सफल है। भूषण एक श्रेष्ठ वीर रस के कवि हैं।
4. गाँव का घर’ शीर्षक कविता के रचयिता आधुनिक हिंदी
के कवि ज्ञानेन्द्रपति हैं। ज्ञानेन्द्र की कविता में एक अद्भुत रचाव-बसाव-कसाव पाया जाता है। गाँव का घर बाँस-बल्ले और मिट्टी से बना हुआ होता है। उस घर से हम जुड़े रहते हैं। घर के अन्तःपुर के चौखट पर ही बड़े-बूढ़े अन्दर आने से पहले खाँसकर आवाज देते थे। बुजुर्गों के खड़ाऊँ की आवाज से सभी डरकर सटक जाते थे। चौखट से पहले ही ये अभिभावक खड़े रहते थे। वहाँ कोई परदा नहीं था। एक अदृश्य परदा ही परदे का काम करता था। वे किसी का नाम लिए बिना ही पुकारते थे। अभिभावक की अंगुली के इशारे पर ही सारा घर नाचता था, सारे काम-काज होते थे। संशय के चिह्न की तरह गाँव के घर के चौखट होते थे। चौखट के बगल में गेरू से पुती हुई दीवाल होती थी। दूधवाले ने कितने दिन दूध दिए उसके निशान लगा दिए जाते थे। बचपन में कवि ने यह दृश्य देखा था।
गाँव का वह घर अब अपनी शक्ल बदल चुका है। अब लगता है वह अपना गाँव है ही नहीं। पंचायती राज का शासन आया। पंचों की ईमानदारी अब नहीं रही। वे पंच परमेश्वर नहीं रहे। गाँव के घरों में बिजली बत्ती लग गयी है। बल्ब की रोशनी रहने की जगह बुझी ही रहती है। बेटों के दहेज में दूरदर्शन लिए जाते हैं। लालटेनें खूंटी पर लटकी दिखाई देती हैं। रातें अब उजाले से अधिक अँधेरा ही उगलती हैं। कहीं बहुत दूर चकाचौंध रोशनी में आर्केस्ट्रा वाद्य-यंत्र बजते दिखाई सुनाई पड़ते हैं। आवाज उन वाद्य यंत्रों की ठीक से सुनाई नहीं पड़ती। उनकी रोशनी भी झिल-मिलाती दिखाई पड़ती