12th Hindi Long Question Answer board exam Answer

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12th Hindi Long

1. गाँधीजी किसानों की समस्या दूर करने के लिए चम्पारण आए थे। गाँधीजी ग्रामों की दुर्व्यवस्था को दूर करने में शिक्षा की महत्ता की भूमिका आवश्यक मानी। उन्होंने कहा कि जब तक ग्रामीण बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था नहीं होगी तब तक केवल आर्थिक समस्याओं को सुलझाने से काम नहीं चलेगा। उन्होंने कहा कि वे चम्पारण में कुछ ग्रामीण विद्यालयों की स्थापना करना चाहते हैं। थोड़े दिन बाद उन्होंने तीन गाँवों में आश्रम विद्यालय स्थापित किए-बड़हरवा, मधुबन और भितिहरवा। कुछ निष्ठावान कार्यकर्ताओं को तीन गाँवों में तैनात किया। वे कार्यकर्ता आए गुजरात और महाराष्ट्र से। बड़हरवा का विद्यालय विदेश में शिक्षा प्राप्त इंजीनियर श्री बवनजी गोखले और उनकी विदुषी पत्नी अवंतिका बाई गोखले ने चलाया।

साथ में देवदास गाँधी भी थे। मधुबन में गाँधीजी ने गुजरात से नरहरिदास पारिख और उनकी पत्नी तथा अपने सेक्रेटरी महादेव देसाई को भेजा। कुछ दिन आचार्य कृपलानी भी वहाँ रहे। बाद में वहाँ पुंडलीकजी गए। कस्तूरबा भी भितिहरवा आश्रम में रहीं।

2.बिहार के उत्तर-पश्चिम कोण में अवस्थित चम्पारण की भूमि पेड़,

पौधों एवं जंगलों से भरी हुई थी। इन पेड़ों की कटाई कृषि एवं अन्य आवश्यकताओं के लिए कर दी गई। बरसात के दिनों में यहाँ की नदियाँ बाढ़ का पानी ला देती है। मसान, सिकराना, पंडई एवं गंडक इत्यादि नदियाँ यहाँ के निवासियों को ललकारती हैं। चारों ओर जल-ही-जल दिखाई पड़ता है। जगदीश चन्द्र माथुर ने उन नदियों के बाढ़ के पानी की उच्छृंखलता का बिम्ब ‘उन्मत यौवना वीरांगनाओं’, ‘कैकेयी’ के क्रोध से दिया है। पहले घना जंगल था। वृक्षों की जड़ों में पानी रुका रहता था। बाढ़ नहीं आती थी। विभिन्न जगहों के मजदूर भी आकर बसते गए और पेड़ कटते गए। बाढ़ आना लाजिमी हो गया।

3. सिपाही की माँ’ मोहन राकेश द्वारा रचित एकांकी है। इस एकांकी में माँ, बेटा और बेटी की कहानी वार्तालाप के माध्यम से कही गयी।

सिपाही की माँ बिशनी को बेटी की शादी करनी है। वह अब युवती बन चुकी है। लेकिन, घर में पैसों का अभाव है। बेटा मानक सिपाही बर्मा की ओर से दूसरा विश्वयुद्ध लड़ने जाता है। सिपाही बनकर वह कुछ पैसा कमाकर लाएगा तो बहन की शादी करेगा।

माँ एक भोली देहाती स्त्री है। वह यह भी नहीं जानती है कि बेटा उसका युद्ध में सिपाही बनकर दुश्मनों से लड़ने गया है। वह लौटेगा भी या दुश्मनों के हाथ मारा जाएगा।

प्रस्तुत एकांकी का अंत उम्मीद के साथ होता है कि मेरा बेटा मानक आएगा। माँ, बेटी दुःख और निराशा में जूझते रहते हैं। कथा में प्रवाह है। वार्तालाप में जान है।

4. तिरिछ’ शीर्षक कहानी के कहानीकार उदय प्रकाश हैं।

उदय प्रकाश नूतन तथ्यों और कथ्यों वाली कहानी लिखने में सिद्धहस्त हैं।

‘तिरिछ’ एक आधुनिक त्रासदी है। आज के युग में समय बहुत दूर तक वैश्विक और सार्वभौमिक हो चुका है। विकास की दृष्टि से दुनिया के देशों का चाहे अब भी विभाजन किया जा सकता हो, पर कहीं ऐसे विभाजन अप्रसांगिक भी हो चुके हैं। ऐसे में भारत जैसे देश में यथार्थ और समय के बीच चाहे अब भी विभाजन किया जा सकता हो पर कहीं ऐसे विभाजन अप्रासंगिक भी हो चुके हैं। ऐसे में भारत जैसे देश में यथार्थ और समय के बीच बहुसंख्यक समाज के लिए एक ऐसी अलंघ्य खाई उभरी है जिसके चलते जीवन में बेगानगी और अजनबियत आई है। कहानी नई पीढ़ी के प्रतिनिधि बेटे के दृष्टिकोण से लिखी हुई और बाबूजी के बारे में है,

जो सुदूर गाँव में रहते हैं। वे शहर जाते हैं और फिर शहर में उनके साथ जो कुछ घटित होता है, कहानी उसी के बारे में है। जो घटित हुआ है वह अत्यंत अप्रत्याशित, दारुण और भयावह है। आमूल बदलते हुए समय का नया, भीषण यथार्थ, जिसके शिकार बाबूजी बनते हैं, बेटे के सपने में ‘तिरिछ’ बनकर प्रकट होता है। तिरिछ एक विषैला और भयानक जंतु है, जो कहानी में प्रतीक बन जाता है।

‘तिरिछ’ कहानी ‘जादुई यथार्थ’ की कहानी कहा जाता है। यह यथार्थ बाबूजी की गँवई वास्तविकता को पीछे छोड़कर और आगे बहुत आगे बढ़ चुके शहर के तथाकथित आधुनिक समय के द्वन्द्व से उपजता है। दुनिया के उन देशों में जहाँ यथार्थ और समय के बीच खाई उभरी वहाँ जादुई यथार्थ प्रकट हुआ।’

5.प्रस्तुत पंक्तियाँ उदय प्रकाश द्वारा रचित जादुई कहानी ‘तिरिछ’ से उधृत हैं।

“उपरोक्त पंक्तियों द्वारा लेखक अपने पिताजी के विषय में वर्णन करते हैं। उनके पिताजी शहर में जाकर विभिन्न स्थानों पर वहाँ के लोगों की हिंसक कार्रवाइयों के शिकार हो जाते हैं। उनको काफी चोटें आती हैं और वै मरणासन्न हो जाते हैं। उन स्थितियों में भी लेखक एक अजीब-सी राहत महसूस करता है तथा उसकी फँसती हुई साँसें सामान्य हो जाती हैं। वह ऐसा अनुभव करता है कि उसके पिता जी को अब कोई दर्द महसूस करता है तथा उसकी फँसती हुई साँसें सामान्य हो जाती हैं। वह ऐसा अनुभव करता है कि उसके पिताजी को अब कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा होगा। वह ऐसा इसलिए सोचता है कि अब उनके पिताजी को कोई ऐसा विश्वास होने लगा होगा।

उनके साथ जो कुछ भी हुआ वह एक सपना था। उनकी नींद खुलते ही सब ठीक हो जाएगा। पुनः वह यह भी आशा व्यक्त करता है कि उसके पिताजी फर्श पर सोते हुए उसे उसकी छोटी बहन को भी देख सकेंगे। लेखक की इस उक्ति में अजीब विरोधाभास है। लेखक के पिता बुरी तरह घायल हो गए हैं। उनकी स्थिति चिन्ताजनक हो गई है। फिर भी वह आशा करता है कि वे स्वस्थ हो जाएँगे,

उन्हें कोई दर्द महसूस नहीं होगा और वे लेखक तथा उसकी छोटी बहन को फर्श पर लेटे हुए देखेंगे। यहाँ भी लेखक ने प्रतीकात्मक भाषा-शैली का प्रयोग किया है। सम्भवतः हिंसात्मक, भीड़ द्वारा उनके पिताजी बेरहमी से पिटाई तथा उनका सख्त घायल होना, उनकी विपन्नता, प्रताड़ना तथा त्रासदपूर्ण स्थिति को इंगित करता है। प्रतीकात्मक भाषा द्वारा लेखक ने अपने विचारों को प्रकट किया है ऐसा अनुभव होता है। लेखक का इस क्रम में आगे चलकर यह कहना है कि “और जैसे ही वे जागेंगे सब ठीक हो जाएगा या नीचे फर्श पर सोते हुए मैं और छोटी बहन दिख जाएँगे।” लेखक के पिताजी एवं परिवार की सोचनीय आर्थिक दशा का सजीव वर्णन मालूम पड़ता है।”